प्यार के फूल खिलने का कोई वसंत नही होता
सच्चे प्रेम का प्रिये, कोई अंत नही होता
प्रत्येक उत्तर का प्रतिउत्तर तुरन्त नहीं होता
सच्चे प्रेम का पिये , कोई अंत नही होता
ईश्वर ने इसे बनाया, इंसानों ने पूजा
कृष्ण ने इसे अपनाया, धरा पे राधे-कृष्ण गूंजा
प्यार तो दिल की एक दुआ है इसका दुखंत नही होता
सच्चे प्रेम का राधे, कोई अंत नही होता
भले ही कितनी भी हो दूरी धरा और अम्बर में
पर दोनों रहते हमेशा प्रेम के स्वयंवर में
प्रेमवश धरा को अपने आंसुओ से भिगोता
सच्चे प्रेम का सजनी, कोई अंत नही होता
जब होती है वर्षा झूम झूम के नाचे मोर
ऐसे ही मानव भी खींचा जाता प्रेम की ओर
बिना प्रेम के कोई अनुयायी, कोई संत नहीं होता
सच्चे प्रेम का प्रीये, कोई अंत नही होता
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✍️ नरेन्द्र मालवीय
वाह वाह!!!बहोत ही बढिया कविता हैं Sir
ReplyDeleteधन्यवाद मैडम
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