ग़ज़ल
ना तुझे था दिन में चैन, ना ही मुझे रातों मे नींद थी
जैसी तुझे थी उम्मीद मुझसे, मुझे भी तुझसे उम्मीद थी
चाहत थी दिलो में मगर बोलना मुमकिन न हो सका
तकदीर में ना सही, पर दिल में बसी तेरी ही मूरत थी
https://amzn.to/39vxuQ4
आगोश में आईं तो फिर इक दफा यूं लगा
तुझे थी मेरी जरूरत मुझे तेरी जरूरत थीं
मझधार में आके डूब जाते है लोग अक्सर
नज़र जों मिली बीच भंवर में आखो को मिली राहत थी
https://amzn.to/307O4Cz
अपनो को छोड़ गैरो से भी मिल जाती है खुशियां
कि गम ए मौसम में भी मेरी मुस्कुराने की आदत थी
✍️ नरेन्द्र मालवीय
Comments
Post a Comment
Please comment to encourage my skills