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कितना बदल गया इंसान



ए इंसा तूने ये क्या कर दिया
गुमान ने तुझको इतना बदल दिया
भूल गया इंसानी फितरत को
मतलब ने तुझे अंधा कर दिया

उजाड़ के जंगल को तूने शहर कर दिया
उजाड़ के दूसरों का घर खुद का महल कर दिया
भूल गया इंसानी फितरत को
मतलब ने तुझे अंधा कर दिया

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गुमान था हवा को अपनी आज़ादी पर
एक बच्चे ने हवा को मुंह से गुब्बारे में भर दिया
गुमान था बादल को के उड़ रहा आसमान में
बिजली ने पल भर में उसे पानी कर दिया

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बदल गई चाहत तेरी बदल है रंगत
बदले की चाहत ने ये क्या कर दिया
ए इंसा तूने ये क्या कर दिया
गुमान ने तुझको इतना बदल दिया

✍️ नरेन्द्र मालवीय


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