हो गई फिर कहानी शुरू
क्या करू, कुछ करू या न करू ?
मेरे मन की डोर में उलझी वो
जाने कब कैसे वो सुलझेगी
जब मिले, दिल में फूल खिले
खुशबू फिज़ा में बिखरेगी
आ गए हम रूबरू
हो गई फिर कहानी शुरू
क्या करू, कुछ करू या न करू ?
मेरे सपने है खास - खास
पर नखरे उसके पचास
बिन बादल ही बरसती है
मन में मेरे बसती है
फूल की जैसे खुशबू
हो गई फिर कहानी शुरू
क्या करू, कुछ करू या न करू ?
✍️ नरेंद्र मालवीय
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