स्वीकार मुझे कर मृगनयनी, हे रूप रंग की मलिका
माना मै अदना सा भवरा और तू सुंदर कलिका
बदल जाएगा रंग भी मेरा, एक बार भले,पर छूना
तू ही मेरा घर - मन्दिर, तू ही मक्का मदीना
तू है गर माथे की बिंदी मै कुमकुम का टीका
स्वीकार मुझे कर मृगनयनी, हे रूप रंग की मलिका
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खिल जाए मुरझाई कालिया तू जहा से गुजरे
बोले जब तू लबो से तेरे फूल ही फूल बिखरे
मन्द मन्द मुस्कान मैंने तुझसे ही तो सीखा
स्वीकार मुझे कर मृगनयनी, हे रूप रंग की मलिका
कर गई तू ऐसा जादू, मन लगता अब कहीं ना
अब तो मुश्किल बहोत हो गया तेरे बिना जीना
साथ रह कर सीखा दे मुझको जीने का सलीका
स्वीकार मुझे कर मृगनयनी, हे रूप रंग की मलिका
✍️ नरेन्द्र मालवीय
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