साम, दाम, दंड, भेद, जैसे चाहे लक्ष भेद
जी सदा ही वीरो सा, दबा कभी न मन का भेद
तुझको आज और आगे बढना है
आज कुछ तूफानी करना है
मुश्किलों के सामने खून तेरा न हो श्वेत
वृक्ष सा हो मन तेरा, होना न कभी तू बेंत
दरिया में कमल सा तुझे खिलना है
आज कुछ तूफानी करना है
है कठिन तू आगे बढ, कब तलक रहेगी जड़
सींच-सींच उसको सींच उसमे भी लगेगा फल
मुस्कुराके फूलों सा खिलना है
आज कुछ तूफानी करना है
सोच-सोच रहा क्यूँ सोच, कर-गुजर, अकेला चल
दल-दल है आस-पास फिर भी स्वच्छ खिले कमल
मुसीबतों से तुझको ही लड़ना है
अरे, आज कुछ तूफानी करना है
✍️ नरेन्द्र मालवीय
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