मै टकराके तेरे गम से, यूहीं बिखर जाऊं ?
पत्ता नहीं हूं पेड़ का, जों आंधियों से गिर जाऊं
मै वो चिराग़ हूं, जो तुफ़ान में भी जलता हूं
रोशनी देता हुं तेज, जब अंधेरों से घिर जाऊं
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चिटी जों छोटी सी, चड़ती पहाड़ों पर
डूब के तिनका भी आ जाता किनारों पर
सपनो से अपने, क्या? यूहीं मुकर जाऊं!
पत्ता नहीं हूं पेड़ का, जों आंधियों से गिर जाऊं
वेग नदियों सा हिम्मत पहाड़ों सी
काली रातों में चमक सितारों सी
सेहरा में भी जाके में फूल खिलाऊ
पत्ता नहीं हूं पेड़ का, जों आंधियों से गिर जाऊं
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मै टकराके तेरे गम से, यूहीं बिखर जाऊं ?
पत्ता नहीं हूं पेड़ का, जों आंधियों से गिर जाऊं
✍️ नरेंद्र मालवीय
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