बारिश हुई पर भीग न पाया, बारिश की बौछारों से...
ठोकर खाकर वापस आया, मेरा मन दीवारों से...
छोटी छोटी बूंदें ये, पत्थर जैसी लग रही...
परख रहा है हर कोई, मुझे अपने-अपने विचारों से...
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अपरिवर्तित था जब मै, सबने चाहा परिवर्तन..
ठोस, जब तरल हुआ, साथ छोड़ गया बर्तन..
बेह रहा अब इधर उधर, अनचाही दरारों से...
ठोकर खाकर वापस आया, मेरा मन दीवारों से...
बारिश हुई पर भीग न पाया, बारिश की बौछारों से...
ठोकर खाकर वापस आया, मेरा मन दीवारों से...
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फिर अचानक मुझे खुदा की आवाज़ आई...
बोले खुदा मै हु रचयिता, ये दुनिया मैंने रचाई...
दुनिया एक शतरंज यहा पे, क्यों डरता इन चालों से..
तेरा मन मजबूत बनेगा, टकराकर दीवारों से..
कब तक जियेगा तू बन्दे औरों के सहारों से...
फिर हुई जो बारिश ऐसी, भीगा मै बौछारों से..
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✍️ नरेन्द्र मालवीय
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